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Showing posts from June 8, 2020

RAAM BANVAS PRASANG

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RADHEY KRISHNA WORLD 9891158197 मित्रो प्रसंग उस समय का है?प्रभुश्रीराम माता सीता अनुज लक्ष्मण को वनवास हो चुका है। राजा दसरथ का स्वर्गवास हो चुका है। भरतजी स्वप्न देखते हैं? क्योंकि उस समय भरतजी ओर शत्रुघनजी मामा के यहाँ थे। * अनरथु अवध अरंभेउ जब तें। कुसगुन होहिं भरत कहुँ तब तें॥ देखहिं राति भयानक सपना। जागि करहिं कटु कोटि कलपना॥ भावार्थ:-जब से अयोध्या में अनर्थ प्रारंभ हुआ, तभी से भरतजी को अपशकुन होने लगे। वे रात को भयंकर स्वप्न देखते थे और जागने पर (उन स्वप्नों के कारण) करोड़ों (अनेकों) तरह की बुरी-बुरी कल्पनाएँ किया करते थे॥ अयोध्या में पातक काल है।राजा दशरथ का शरीर नहीं रहा। अयोध्या में अनाथता है। सुमंत अचेत हो गए हैं। वशिष्ठ तब राजपत्र उठाते हैं। लिखते हैं -प्रिय भरत (आशीष नहीं लिखते )अयोध्या में शीघ्र लौटो। अब वह ये भी नहीं लिख सकते -आपका शुभचिंतक। वह इतना ही लिखते हैं -आपका गुरु वशिष्ठ। सूतक काल में और कुछ लिख नहीं सकते थे। न आशीष न शुभेच्छु। भरत बार बार एक सपना देखते हैं। पूरी अयोध्या में अन्धेरा है। एक सुरंग है। वह राम के पीछे भागते है

AAJ KI TITHI 9 JUNE 2020

RADHEY KRISHNA WORLD 9891158197 AAJ KI TITHI श्री हरिदासो विजयतेतराम  श्रीमत्कुंजबिहारिन्यै: नम: 🌞 ~ आज का पंचांग ~ 🌞 ⛅ दिनांक 09 जून 2020 ⛅ दिन - मंगलवार ⛅ विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076) ⛅ शक संवत - 1942 ⛅ अयन - उत्तरायण ⛅ ऋतु - ग्रीष्म ⛅ मास - आषाढ़ (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार ज्येष्ठ) ⛅ पक्ष - कृष्ण ⛅ तिथि - चतुर्थी रात्रि 07:39 तक तत्पश्चात पंचमी ⛅ नक्षत्र - उत्तराषाढा दोपहर 02:00 तक तत्पश्चात श्रवण ⛅ योग - ब्रह्म दोपहर 11:17 तक तत्पश्चात इन्द्र ⛅ राहुकाल - शाम 03:47 से शाम 05:28 तक ⛅ सूर्योदय - 05:57 ⛅ सूर्यास्त - 19:18 ⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में ⛅ व्रत पर्व विवरण - मंगलवारी चतुर्थी (सूर्योदय से रात्रि 07:39 तक)  💥 विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

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समुद्र मंथन की कथा

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Radhey krishna World 9891158197 भगवान शिव के अनेकों कथाओं में से समुद्र मंथन की कथा भी एक हैं, ये कथा शिव पुराण की कथाए हैं जो बहुत ही रोमांचक हैं :  एक बार की बात है शिवजी के दर्शनों के लिए दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कैलाश जा रहे थे। मार्ग में उन्हें देवराज इन्द्र मिले। इन्द्र ने दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों को भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। तब दुर्वासा ने इन्द्र को आशीर्वाद देकर विष्णु भगवान का पारिजात पुष्प प्रदान किया।  इन्द्रासन के गर्व में चूर इन्द्र ने उस पुष्प को अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दिया। उस पुष्प का स्पर्श होते ही ऐरावत सहसा विष्णु भगवान के समान तेजस्वी हो गया। उसने इन्द्र का परित्याग कर दिया और उस दिव्य पुष्प को कुचलते हुए वन की ओर चला गया। इन्द्र द्वारा भगवान विष्णु के पुष्प का तिरस्कार होते देखकर दुर्वाषा ऋषि के क्रोध की सीमा न रही।  उन्होंने देवराज इन्द्र को श्री (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दे दिया। दुर्वासा मुनि के शाप के फलस्वरूप लक्ष्मी उसी क्षण स्वर्गलोक को छोड़कर अदृश्य हो गईं। लक्ष्मी के चले जाने से इन्द्र आदि देवता न

‍शिवपुराण में शिव-शक्ति का संयोग

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Radhey krishna World 9891158197 मित्रों आज सोमवार है, भगवान शंकर का दिन है, हमेशा की तरह आज हम आपको ‍शिवपुराण में शिव-शक्ति का संयोग के बारे में बतायेगें!!!!!! शिव पुराण के अनुसार शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है। शिव की जो पराशक्ति है उससे चित्‌ शक्ति प्रकट होती है। चित्‌ शक्ति से आनंद शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, आनंद शक्ति से इच्छाशक्ति का उद्भव हुआ है, इच्छाशक्ति से ज्ञानशक्ति और ज्ञानशक्ति से पांचवीं क्रियाशक्ति प्रकट हुई है। इन्हीं से निवृत्ति आदि कलाएं उत्पन्न हुई हैं।  चित्‌ शक्ति से नाद और आनंदशक्ति से बिंदु का प्राकट्य बताया गया है। इच्छाशक्ति से 'म' कार प्रकट हुआ है। ज्ञानशक्ति से पांचवां स्वर 'उ' कार उत्पन्न हुआ है और क्रियाशक्ति से 'अ' कार की उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार प्रणव (ॐ) की उत्पत्ति हुई है।  शिव से ईशान उत्पन्न हुए हैं, ईशान से तत्पुरुष का प्रादुर्भाव हुआ है। तत्पुरुष से अघोर का, अघोर से वामदेव का और वामदेव से सद्योजात का प्राकट्य हुआ है। इस आदि अक्षर प्रणव से ही मूलभूत पांच स्वर और तैंतीस व्यजंन के रूप में अड़तीस

भगवान शिव,एक परिचय

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Radhey krishna World 9891158197 भगवान शिव,एक परिचय!!!!!! भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं, त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है, अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है, अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती, शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है, वे तो औघड़ बाबा हैं, जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रूद्राक्ष की माला, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं इसीलिये उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है।  उनकी वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है, शीश पर गंगा और चन्द्र जीवन एवं कला के द्योतम हैं, शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है, यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है। रामचर

श्रीकृष्ण अपने पैर का अंगूठा क्यों पीते थे ?, KRISHNA LEELA

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Radhey krishna World 9891158197 श्रीकृष्ण अपने पैर का अंगूठा क्यों पीते थे ? श्रीकृष्ण सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा हैं । यह सारा संसार उन्हीं की आनन्दमयी लीलाओं का विलास है । श्रीकृष्ण की लीलाओं में हमें उनके ऐश्वर्य के साथ-साथ माधुर्य के भी दर्शन होते हैं । ब्रज की लीलाओं में तो श्रीकृष्ण संसार के साथ बिलकुल बँधे-बँधे से दिखायी पड़ते हैं । उन्हीं लीलाओं में से एक लीला है बालकृष्ण द्वारा अपने पैर का अंगूठे पीने की लीला ।  श्रीकृष्णावतार की यह बाललीला देखने, सुनने अथवा पढ़ने में तो छोटी-सी तथा सामान्य लगती है किन्तु इसे कोई हृदयंगम कर ले और कृष्ण के रूप में मन लग जाय तो उसका तो बेड़ा पार होकर ही रहेगा क्योंकि ‘नन्हे श्याम की नन्ही लीला, भाव बड़ा गम्भीर रसीला ।’ श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला का भाव भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्येक कार्य को संतों ने लीला माना है जो उन्होंने किसी उद्देश्य से किया । जानते हैं संतों की दृष्टि में क्या है श्रीकृष्ण के पैर का अंगूठा पीने की लीला का भाव ? संतों का मानना है कि बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को

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Radhey krishna World 9891158197 तुम्हारा साथ तसल्ली से चाहिए मुझे मेरे साँवरिया 😍😍💕💕🌹🌹🌹जन्मों की थकान पल भर में कहां मिटती है मेरे कृष्णा 🍂😍🌹 क्या खूब है मेरा दर्द....             ना.. जाने कितनो को...काम आता है, किसी को महबूबा याद आती है....                किसी को सनम याद आता है......!!!! साँवरिया.... मेरी इबादतों का कोई भी वक़्त...... तय नहीं होता... तुम ख्यालों में आते हो.. हम सजदे में बैठ जाते हैं..!!! *राधे कृष्णा वर्ल्ड*          *9891158197* *राधे कृष्णा वर्ल्ड* भक्ति ग्रूप मे शामिल होने के लिए कृपया आप अपना नाम और किस शहर सें हैं , ये जानकारी हमको बताने की कृपा करें ।  *राधे कृष्णा वर्ल्ड* महिला - पुरुष ग्रूप पूर्णतया सुरक्षित हैं , कृपया  9891158197 नंबर को सेव(save)करें  *ग्रूप- एडमिन*    सौरभ शर्मा     रचना खेरा  यामिनी मारवाह  आपसे एक छोटा सा निवेदन है कि इस ग्रुप में ज्यादा से ज्यादा भक्तो को जोड़े ताकि सभी तक प्रभु वचन पहुँचे । सब राधा नाम ले https://wa.me/919

Radha govind dev ji temple, Jaipur

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Radhey krishna World 9891158197 RadhaGovind Dev Ji, Jaipur temple. राधागोविंद देव जी, जयपुर ठाकुर श्री गोविन्ददेवजी महाराज के वर्तमान मंदिर परिसर में विराजमान होते ही जैसे जयपुर का भाग्य उदय हो गया इसके पश्चात ही इनके अनुपम अलौकिक वरद हस्त के संरक्षण में18 नवम्बर सन 1727 को गंगापोल पर जयपुर की नींव का पत्थर लगाया गया। दीवान विद्याधर और नंदराम मिस्त्री द्वारा वास्तु और अंक ज्योतिष पर आधारित योजना के अनुसार सवाई जयसिंह द्वितीय ने इस शहर को बसाकर तैयार कर दिया। मंदिर मे तो गोविंद देव जी देखने को ही विराजित है असल मे बसते तो ये जयपुर के लोगों की सांसों में हैं ! ठाकुर जी इन भक्तों के सर्वश है .. अपनी आस्था और विश्वास के इन स्रोत के लिये जयपुर वासियों का हृदय सहज ही पुकार उठता है : त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या दविणं त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देव देव ।। इन अहैतु के कृपा सरोवर से भक्ति की एक स्वर्गिक गंगा बह चली, वृन्दावन मानो जयपुर में जीवित हो उठा..! मंदिर का इतिहास गोविन्द देव जी मंद