श्रीकृष्ण अपने पैर का अंगूठा क्यों पीते थे ?, KRISHNA LEELA

Radhey krishna World 9891158197

श्रीकृष्ण अपने पैर का अंगूठा क्यों पीते थे ?


श्रीकृष्ण सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा हैं । यह सारा संसार उन्हीं की आनन्दमयी लीलाओं का विलास है । श्रीकृष्ण की लीलाओं में हमें उनके ऐश्वर्य के साथ-साथ माधुर्य के भी दर्शन होते हैं । ब्रज की लीलाओं में तो श्रीकृष्ण संसार के साथ बिलकुल बँधे-बँधे से दिखायी पड़ते हैं । उन्हीं लीलाओं में से एक लीला है बालकृष्ण द्वारा अपने पैर का अंगूठे पीने की लीला । 

श्रीकृष्णावतार की यह बाललीला देखने, सुनने अथवा पढ़ने में तो छोटी-सी तथा सामान्य लगती है किन्तु इसे कोई हृदयंगम कर ले और कृष्ण के रूप में मन लग जाय तो उसका तो बेड़ा पार होकर ही रहेगा क्योंकि ‘नन्हे श्याम की नन्ही लीला, भाव बड़ा गम्भीर रसीला ।’

श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला का भाव
भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्येक कार्य को संतों ने लीला माना है जो उन्होंने किसी उद्देश्य से किया । जानते हैं संतों की दृष्टि में क्या है श्रीकृष्ण के पैर का अंगूठा पीने की लीला का भाव ?

संतों का मानना है कि बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्यों ब्रह्मा, शिव, देव, ऋषि, मुनि आदि इन चरणों की वंदना करते रहते हैं और इन चरणों का ध्यान करने मात्र से उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ? कैसे इन चरण-कमलों के स्पर्श मात्र से गौतमऋषि की पत्नी अहिल्या पत्थर की शिला से सुन्दर स्त्री बन गई ?

 कैसे इन चरण-कमलों से निकली गंगा का जल (गंगाजी विष्णुजी के पैर के अँगूठे से निकली हैं अत: उन्हें विष्णुपदी भी कहते हैं) दिन-रात लोगों के पापों को धोता रहता है ? क्यों ये चरण-कमल सदैव प्रेम-रस में डूबी गोपांगनाओं के वक्ष:स्थल में बसे रहते हैं ? क्यों ये चरण-कमल शिवजी के धन हैं । मेरे ये चरण-कमल भूदेवी और श्रीदेवी के हृदय-मंदिर में हमेशा क्यों विराजित हैं ।

जे पद-पदुम सदा शिव के धन,सिंधु-सुता उर ते नहिं टारे।
जे पद-पदुम परसि जलपावन,सुरसरि-दरस कटत अघ भारे।।
जे पद-पदुम परसि रिषि-पत्नी,बलि-मृग-ब्याध पतित बहु तारे।
जे पद-पदुम तात-रिस-आछत,मन-बच-क्रम प्रहलाद सँभारि।।

भक्तगण मुझसे कहते हैं कि—

हे कृष्ण ! तुम्हारे चरणारविन्द प्रणतजनों की कामना पूरी करने वाले हैं, लक्ष्मीजी के द्वारा सदा सेवित हैं, पृथ्वी के आभूषण हैं, विपत्तिकाल में ध्यान करने से कल्याण करने वाले हैं ।

भक्तों और संतों के हृदय में बसकर मेरे चरण-कमल सदैव उनको सुख प्रदान क्यों करते हैं ? बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रस का ही पान क्यों करते हैं । क्या यह अमृतरस से भी ज्22यादा स्वादिष्ट है ? 

विहाय पीयूषरसं मुनीश्वरा,
ममांघ्रिराजीवरसं पिबन्ति किम्।
इति स्वपादाम्बुजपानकौतुकी,
स गोपबाल: श्रियमातनोतु व:।।

अपने चरणों की इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला किया करते थे ।
*राधे कृष्णा वर्ल्ड*
         *9891158197*

*राधे कृष्णा वर्ल्ड* भक्ति ग्रूप मे शामिल होने के लिए कृपया आप अपना नाम और किस शहर सें हैं , ये जानकारी हमको बताने की कृपा करें । 

*राधे कृष्णा वर्ल्ड* महिला - पुरुष ग्रूप पूर्णतया सुरक्षित हैं , कृपया 
9891158197 नंबर को सेव(save)करें 

*ग्रूप- एडमिन*
   सौरभ शर्मा 
   रचना खेरा 
यामिनी मारवाह 

आपसे एक छोटा सा निवेदन है कि इस ग्रुप में ज्यादा से ज्यादा भक्तो को जोड़े ताकि सभी तक प्रभु वचन पहुँचे । सब राधा नाम ले

https://wa.me/919891158197

नोट :- आप हमारे फेसबुक , यू टूयूब , ब्लोग्गर सें भी जुड़ सकते हैं ।

Comments

Popular posts from this blog

श्री राधा नाम की महिमा

Maiya me to Chandra khilona lehon BHAKTI STORY ,radhey krishna world

भगवान की परिभाषा क्या है, भगवान किसे कहते है?