मीरा चरित (27) || राधेकृष्णावर्ल्ड 9891158197 || #srbhshrmrkw
राधेकृष्णावर्ल्ड 9891158197
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मीरा चरित (27)
क्रमशः से आगे ...........
विवाह के उत्सव घर में होने लगे- हर तरफ कोलाहल सुनाई देता था । मेड़ते में हर्ष समाता ही न था ।मीरा तो जैसी थी , वैसी ही रही । विवाह की तैयारी में मीरा को पीठी (हल्दी) चढ़ी ।उसके साथ ही दासियाँ गिरधरलाल को भी पीठी करने और गीत गाने लगी ।
मीरा को किसी भी बात का कोई उत्साह नहीं था । किसी भी रीति - रिवाज़ के लिए उसे श्याम कुन्ज से खींच कर लाना पड़ता था ।जो करा लो , सो कर देती ।न कराओ तो गिरधर लाल के वागे (पोशाकें) , मुकुट ,आभूषण संवारती , श्याम कुन्ज में अपने नित्य के कार्यक्रम में लगी रहती ।खाना पीना , पहनना उसे कुछ भी नहीं सुहाता ।श्याम कुन्ज अथवा अपने कक्ष का द्वार बंद करके वह पड़ी -पड़ी रोती रहती ।
मीरा का विरह बढ़ता जा रहा है ।उसके विरह के पद जो भी सुनता , रोये बिना न रहता । किन्तु सुनने का , देखने का समय ही किसके पास है ? सब कह रहे है कि मेड़ता के तो भाग जगे है कि हिन्दुआ सूरज का युवराज इस द्वार पर तोरण वन्दन करने आयेगा ।उसके स्वागत में ही सब बावले हुये जा रहे है ।कौन देखे-सुने कि मीरा क्या कह रही है ?
वह आत्महत्या की बात सोचती -
"ले कटारी कंठ चीरूँ कर लऊँ मैं अपघात।
आवण आवण हो रह्या रे नहीं आवण की बात ॥"
किन्तु आशा मरने नहीं देती । जिया भी तो नहीं जाता , घड़ी भर भी चैन नहीं था । मीरा अपनी दासियों -सखियों से पूछती कि कोई संत प्रभु का संदेशा लेकर आये है ? उसकी आँखें सदा भरी भरी रहती -........
मीरा का विरह बढ़ता जा रहा है ।उसके विरह के पद जो भी सुनता , रोये बिना न रहता ।
कोई कहियो रे प्रभु आवन की,
आवन की मनभावन की ॥
आप न आवै लिख नहीं भेजे ,
बान पड़ी ललचावन की ।
ऐ दोऊ नैण कह्यो नहीं मानै,
नदिया बहै जैसे सावन की॥
कहा करूँ कछु बस नहिं मेरो,
पाँख नहीं उड़ जावन की ।
मीरा के प्रभु कबरे मिलोगे ,
चेरी भई तेरे दाँवन की॥
कोई कहियो रे प्रभु आवन की,
आवन की मनभावन की...........
क्रमशः ......................
विवाह के उत्सव घर में होने लगे- हर तरफ कोलाहल सुनाई देता था । मेड़ते में हर्ष समाता ही न था ।मीरा तो जैसी थी , वैसी ही रही । विवाह की तैयारी में मीरा को पीठी (हल्दी) चढ़ी ।उसके साथ ही दासियाँ गिरधरलाल को भी पीठी करने और गीत गाने लगी ।
मीरा को किसी भी बात का कोई उत्साह नहीं था । किसी भी रीति - रिवाज़ के लिए उसे श्याम कुन्ज से खींच कर लाना पड़ता था ।जो करा लो , सो कर देती ।न कराओ तो गिरधर लाल के वागे (पोशाकें) , मुकुट ,आभूषण संवारती , श्याम कुन्ज में अपने नित्य के कार्यक्रम में लगी रहती ।खाना पीना , पहनना उसे कुछ भी नहीं सुहाता ।श्याम कुन्ज अथवा अपने कक्ष का द्वार बंद करके वह पड़ी -पड़ी रोती रहती ।
मीरा का विरह बढ़ता जा रहा है ।उसके विरह के पद जो भी सुनता , रोये बिना न रहता । किन्तु सुनने का , देखने का समय ही किसके पास है ? सब कह रहे है कि मेड़ता के तो भाग जगे है कि हिन्दुआ सूरज का युवराज इस द्वार पर तोरण वन्दन करने आयेगा ।उसके स्वागत में ही सब बावले हुये जा रहे है ।कौन देखे-सुने कि मीरा क्या कह रही है ?
वह आत्महत्या की बात सोचती -
"ले कटारी कंठ चीरूँ कर लऊँ मैं अपघात।
आवण आवण हो रह्या रे नहीं आवण की बात ॥"
किन्तु आशा मरने नहीं देती । जिया भी तो नहीं जाता , घड़ी भर भी चैन नहीं था । मीरा अपनी दासियों -सखियों से पूछती कि कोई संत प्रभु का संदेशा लेकर आये है ? उसकी आँखें सदा भरी भरी रहती -........
मीरा का विरह बढ़ता जा रहा है ।उसके विरह के पद जो भी सुनता , रोये बिना न रहता ।
कोई कहियो रे प्रभु आवन की,
आवन की मनभावन की ॥
आप न आवै लिख नहीं भेजे ,
बान पड़ी ललचावन की ।
ऐ दोऊ नैण कह्यो नहीं मानै,
नदिया बहै जैसे सावन की॥
कहा करूँ कछु बस नहिं मेरो,
पाँख नहीं उड़ जावन की ।
मीरा के प्रभु कबरे मिलोगे ,
चेरी भई तेरे दाँवन की॥
कोई कहियो रे प्रभु आवन की,
आवन की मनभावन की...........
क्रमशः ......................
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