MEERA CHARITRA BHAAG 8,RADHEY KRISHNA WORLD 9891158197

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मीरा चरित (8)

 क्रमशः से आगे..........


आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है ।राजमन्दिर में और श्याम कुन्ज में प्रातःकाल से ही उत्सव की तैयारियाँ होने लगी ।मीरा का मन विकल है पर कहीं आश्वासन भी है कि प्रभु आज अवश्य पधारेगें ।बाहर गये हुये लोग , भले ही नौकरी पर गये हो , सभी पुरुष तीज तक घर लौट आते हैं ।फिर आज तो उनका जन्मदिन है । कैसे न आयेंगे भला ? पति के आने पर स्त्रियाँ कितना श्रृगांर  करती है -तो मैं क्या ऐसे ही रहूँगी ? तब...... मैं भी क्यों न पहले से ही श्रृगांर  धारण कर लूँ ? कौन जाने , कब पधार जावें वे !"
       

               मीरा ने मंगला से कहा ," जा मेरे लिए उबटन ,सुगंध और श्रृगांर की सब सामग्री ले आ ।" और चम्पा से बोली  कि माँ से जाकर सबसे सुंदर काम वाली पोशाक और आभूषण ले आये ।
 
         

            सभी को प्रसन्नता हुईं कि मीरा आज श्रृगांर कर रही है । बाबा बिहारी दास जी की इच्छा थी कि आज रात मीरा चारभुजानाथ के यहाँ होने वाले भजन कीर्तन में उनका साथ दें । बाबा की इच्छा जान मीरा असमंजस में पड़ गई ।थोड़े सोचने के बाद बोली -" बाबा रात्रि के प्रथम प्रहर में राजमन्दिर में रह आपकी आज्ञा का पालन करूँगी और फिर अगर आप आज्ञा दें तो मैं जन्म के समय श्याम कुन्ज में आ जाऊँ ?"
       

          "अवश्य बेटी !" उस समय तो तुम्हें श्याम कुन्ज में ही होना चाहिए "बाबा ने मीरा के मन के भावों को समझते हुये कहा ।" मेरी तो यह इच्छा थी कि तुम मेरे साथ एक बार मन्दिर में गाओ । बड़ी होने पर तो तुम महलों में बंद हो जाओगी ।कौन जाने , ऐसा सुयोग फिर कब मिले !"

         

मीरा आज नख से शिख तक श्रंगार किये मीरा चारभुजानाथ के मन्दिर में राव दूदाजी और बाबा बिहारी दास जी के बीच तानपुरा लेकर बैठी हुई पदगायन में बाबा का साथ दे रही है ।मीरा के रूप सौंदर्य के अतुलनीय भण्डार के द्वार आज श्रृगांर ने उदघाटित कर दिए थे । नवबालवधु के रूप में मीरा को देख कर सभी राजपुरूष के मन में यह विचार स्फुरित होने लगा कि मीरा किसी बहुत गरिमामय घर -वर के योग्य है । वीरमदेव जी भी आज अपनी बेटी का रूप देख चकित रह गये और मन ही मन दृढ़ निश्चय किया कि  चित्तौड़  की महारानी का पद ही मीरा के लिए उचित स्थान है ।

         

             " बेटी ! अब तुम अपने संगीत के द्वारा सेवा करो ।" बाबा बिहारी दास जी ने गर्व से अपनी योग्य शिष्या को कहा ।
         

 मीरा ने उठकर पहले गुरुचरणों में प्रणाम किया ।फिर चारभुजानाथ और दूदाजी आदि बड़ो को प्रणाम कर गायन प्रारम्भ किया ।आलाप की तान ले मीरा ने सम्पूर्ण वातावरण को बाँध दिया........


बसो मेरे नैनन में नन्दलाल ।
मोहिनी मूरत साँवरी सूरत, नैना बने विशाल ।
अधर सुधारस मुरली राजत उर वैजंती माल॥
छुद्र घंटिका कटितट शोभित नूपुर सबद रसाल ।
मीरा प्रभु संतन सुखदायी, भगत बछल गोपाल ॥

       

 वहाँ उपस्थित सब भक्त जन मीरा के गायन से मन्त्रमुग्ध हो गये । बिहारी दास जी सहित दूदाजी मीरा का वह स्वरचित पद श्रवण कर चकित एवं प्रसन्न हो उठे । दोनों आनन्दित हो गदगद स्वर में बोले -" वाह बेटी !
       

            मीरा ने संकोच वश अपने नेत्र झुका लिये ।बाबा ने उमंग से मीरा से एक और भजन गाने का आग्रह किया तो उसने फिर से तानपुरा उठाया ।अबकि मीरा ने ठाकुर जी की करूणा का बखान करते हुये पद गाया ।

सुण लीजो बिनती मोरी
       मैं सरण गही प्रभु तोरी ।
       
तुम तो पतित अनेक उधारे
    भवसागर से तारे ।
.................................
................................
मीरा प्रभु तुम्हरे रंग राती
या जानत सब दुनियाई ॥

             

 दूदाजी नेत्र मूंद कर एकाग्र होकर श्रवण कर रहे थे ।भजन पूरा होने पर उन्होंने आँखें खोली, प्रशंसा भरी दृष्टि से मीरा की ओर देखा और बोले ," आज मेरा जीवन धन्य हो गया । बेटा , तूने अपने वंश -अपने पिता पितृव्यों को धन्य कर दिया ।" फिर मीरा के सिर पर हाथ रखते हुए अपने वीर पुत्रों को देखते हुये अश्रु विगलित स्वर से बोले ," इनकी प्रचण्ड वीरता और देश प्रेम को कदाचित लोग भूल जायें, पर मीरा तेरी भक्ति और तेरा नाम अमर रहेगा बेटा ......अमर रहेगा ।उनकी आँखें
छलक पड़ी ।


क्रमशः ...................



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