JEEWAN KA UDASHYA KYA HAI
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जीवन का उद्देश्य क्या है?????
* साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी। कबि कोबिद कृतग्य संन्यासी॥
जोगी सूर सुतापस ग्यानी। धर्म निरत पंडित बिग्यानी॥
जोगी सूर सुतापस ग्यानी। धर्म निरत पंडित बिग्यानी॥
भावार्थ:-साधक, सिद्ध, जीवनमुक्त, उदासीन (विरक्त), कवि, विद्वान, कर्म (रहस्य) के ज्ञाता, संन्यासी, योगी, शूरवीर, बड़े तपस्वी, ज्ञानी, धर्मपरायण, पंडित और विज्ञानी-॥
* तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी। राम नमामि नमामि नमामी॥
सरन गएँ मो से अघ रासी। होहिं सुद्ध नमामि अबिनासी॥
सरन गएँ मो से अघ रासी। होहिं सुद्ध नमामि अबिनासी॥
भावार्थ:-ये कोई भी मेरे स्वामी श्री रामजी का सेवन (भजन) किए बिना नहीं तर सकते। मैं, उन्हीं श्री रामजी को बार-बार नमस्कार करता हूँ। जिनकी शरण जाने पर मुझ जैसे पापराशि भी शुद्ध (पापरहित) हो जाते हैं, उन अविनाशी श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥
मित्रों! सम्पदा, बुद्धिमत्ता, बलिष्ठता, प्रतिष्ठा, कला कुशलता जैसी भौतिक उपलब्धियों का शारीरिक सुविधा संवर्धन में कितना योगदान है, इसे आप सभी भली-भांति जानते और समझते हैं, उस उपार्जन के लिए सभी अपनी-अपनी सूझ−बूझ और सामर्थ्य के अनुरूप प्रयत्न भी करते हैं।
इस संदर्भ में एक बात और भी जानने योग्य है, कि आत्मिक प्रखरता का मूल्य इन सबसे अधिक है, चेतना का स्तर ऊँचा उठने पर जो प्राप्त किया जाता है, उस विभूति वैभव को अद्भुत ही समझा जाना चाहियें, इसमें कोई दो राय नहीं है, व्यक्तित्व की गरिमा को जिन्हें हस्तगत होती है, वे आत्मबल के धनी वह सब कुछ प्राप्त करते हैं, जो इस संसार से, और न इस जीवन में पाने योग्य है।
आत्मिक प्रगति की महत्ता तो कितने ही लोग जानते हैं, उनके साथ जुड़ी हुई ऋद्धि-सिद्धियों की विभूतियों के प्रमाण उदाहरण भी देखे सुने होते हैं, किन्तु अपने समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य एक ही है कि इस दिशा में सुनिश्चित गति से बढ़ा सकने वाला मार्गदर्शन एवं सहयोग उपलब्ध नहीं होता, भ्रान्तियों में भटकाने वाली, सस्ते में बहुत लाभ का प्रलोभन देने वाली तथाकथित अध्यात्म की दुकानें तो हर गली-कूचे में लगी रहती है, और देखी भी जाती हैं।
पर उनमें से कदाचित् ही कोई यह सिद्ध करती हो कि अध्यात्म के तीन लाभ आत्म सन्तोष, लोक-सम्मान और दैवी वरदान की कसौटियों पर भी खरा सिद्ध होने वाली महानता उनके द्वारा किसने कहाँ कब उपलब्ध की या करवायी, भ्रान्तियों और विडम्बनाओं में उलझने वाले अन्ततः खिन्न, निराश होते हैं, और संजोयीं हुई आस्था तक गँवा बैठते हैं, समाज एकीकरण व युवा शक्ति को अध्यात्म बोध की ही सबसे बड़ी आवश्यकता पड़ेगी।
इसी से वरिष्ठ प्रतिभायें उभरेंगी और उनके माध्यम से युग अवतरण समाज एकीकरण का महान प्रयोजन पूरा होगा, यह क्षमता युवा-शक्ति में ही है, कि वे आत्म कल्याण और लोक कल्याण का दुहरा प्रयोजन पूरा करें, जागृत आत्माओं के लिए सबसे बड़ी सामयिक आवश्यकता एक ही है, कि अपने में अपेक्षाकृत अधिक आत्मबल सम्पन्न करें, उस विभूति के सहारे स्वयं ऊँचे उठे, प्रखर बने,और अच्छे वातावरण का नव निर्माण कर समाज कल्याण कार्यो से समाज को अनुप्राणित करें।
राजमार्ग पर चलते हुए देर लगती है, पर कभी-कभी ऐसी पगडण्डियाँ भी हाथ लग जाती हैं, जो समय श्रम में असाधारण बचत करके अधिक ऊँचाई तक पहुँचाने का सुयोग प्रदान कर सके, इन दिनों ऐसे आधार उपलब्ध करना और अवलम्बन अपनाना आवश्यक हो गया है, अध्यात्म विज्ञान प्रधानतया श्रद्धा और शक्ति पर आधारित है, इन दिनों बढ़ती तार्किकता एवं प्रत्यक्षवादिता ने श्रद्धा की जड़ें हिलायी हैं, दूसरे इस क्षेत्र में इन दिनों विडम्बना और प्रवंचना ने जिस बुरी तरह अड्डा जमाया है, उसे देखते हुए सर्वत्र अविश्वास का वातावरण बना है।
दोनों ही कारणों से प्रधानता श्रद्धा पर आधारित अध्यात्म एक प्रकार से अविश्वस्त एवम् उपेक्षित स्थिति में जा गिरा है, एक ओर आत्मशक्ति की महती आवश्यकता है तो वही दूसरी ओर उसे उपलब्ध कराने वाले मार्ग पर घनघोर अंधेरा हैं, इन कारणों से एक प्रकार का अवरोध ही अड़ गया है, न सामयिक आवश्यकता की उपेक्षा की जा सकती है, और न भ्रान्तियों, विकृतियों से भरे पूरे प्रचलन का अन्धानुकरण करने की सलाह प्रेरणा ही किसी को दी जा सकती है।
असमंजस इतना जटिल और वास्तविक है जिसका समाधान न सूझ पड़ता है, और न उससे विमुख होने को मन करता है, भाई-बहनों, इन परिस्थितियों में अपना विशिष्ट उत्तरदायित्व बनता है, इसे नये सिरे से समाज के लिये अपनाना है, जो कि धर्म के अनुकूल हो, और निश्चय करना है कि अध्यात्म तत्व ज्ञान और साधना विधान का इस प्रकार नये सिरे से प्रस्तुतीकरण किया जायें जो तर्क, तथ्य और प्रमाण की कसौटी पर खरा सिद्ध हो सके।
इन जटिलताओं के बीच युवाओ को धर्म का निर्वाह करते हुये सर्वसाधारण को विशेषतया जागृत आत्माओं को आत्मबल से सुसम्पन्न बनाने वाला पथ प्रशस्त करना ही होगा, यह कैसे हो? इसका निर्धारण गहरे विचार मन्थन के उपरान्त अब एक प्रकार से निश्चित कर लेना चाहिये, इस आत्म युवाशक्ति संवर्धन प्रयासों को सफल बनाने में हाथ बढ़ाये, और युवाओ को अध्यात्म से जोडने के लिए आदर्श उदाहरण उनके सम्मुख रखे, योग और अध्यात्म को अपने जीवन मे अपनाये और अन्य को जीवन में उतारने के लिये प्रोत्साहित करें।
* सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता॥
धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता॥
धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता॥
भावार्थ:-जिसका मन श्री रामजी के चरणों में अनुरक्त है, वही सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाला) है, वही गुणी है, वही ज्ञानी है। वही पृथ्वी का भूषण, पण्डित और दानी है। वही धर्मपरायण है और वही कुल का रक्षक है॥
*नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥
सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥
सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥
भावार्थ:-जो छल छो़ड़कर श्री रघुवीर का भजन करता है, वही नीति में निपुण है, वही परम् बुद्धिमान है। उसी ने वेदों के सिद्धांत को भली-भाँति जाना है। वही कवि, वही विद्वान् तथा वही रणधीर है॥
जयश्रीराम
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